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Monday 14 October 2013

SHAYRI BY SANTOSH

* जिन्दगी की राहो को गमो से भर दिया
जब भी जी में आया छुप  के रो लिया
जब भी बहने लगे अंशु मेरे आँखों से
तो हंसने का बाहाना बना लिया

* सबने मेरा छोड़ा हम अकेले रह गए
इस भीर भरी मेले में हम कही पे खो गए
बस साथ न छोड़ा कोई तो वो गम था
इस गम भरी दुनिया में साथी गम ही रह गए

* इस मतलबी दुनिया में बेवजह कोई साथ नहीं देता
   मतलब निकल जाये तो कोई साथ नहीं देता
  खुदा ने भी हमें इस मतलब से बनया मेरा  नाम लेगा
  और हम बेवजह किसी और की जान बन बेठे

* हर जगह हमने खाए है धोखे हजार
 फिर भी दिल में लगता है हो गया है प्यार
जिस प्यार ने हमेसा रुलाया है हमें
उसी प्यार पे हमें फिर भी आ गया है प्यार

* जिन्दगी के हर मोड़ पर हमसफ़र मिल जाता है
  साथी तो बहुत मिलता है जीवन साथी एक रह जाता है

*आदमी वो नहीं जो बैठ जाये हार कर दरीचे में
आदमी वो जो वक़्त से आगे निकल जाता है

* वक़्त किसी के साथ नहीं वक़्त के साथ चलना होता है
  जो वक़्त के भरोसे बैठता है वक्त उससे आगे नकल जाता है

* सच्चा प्यार वो होता जो तुमसे प्यार करे
जिस्म का भूखा वो होता है जो जिस्म से प्यार करे
जिस्म की चाहत तो ख़त्म होती है जिस्म से खेलने से
पर सच्चा प्यार ख़त्म नहीं होता है बढता ही जाता है प्यार करने से

* वक़्त कभी पीछे छुटे आदमी को नहीं देखता
वक़्त हमेशा आगे निकले आदमी का पीछा  करता है

* वफ़ा करते नहीं है जो वफ़ा की उम्मीद करते है
बेवफाई करके भी वफ़ा की उम्मीद करते है
हम जिनसे वफ़ा करते है वो किसी और से वफ़ा करते है
वो जिनसे वफ़ा करते है वो किसी और से वफ़ा की उम्मीद करते है

* तिरछी नजरो से हमसे वार करती है
 अपनी जुबा से नहीं आँखों से इजहार करती है
शर्मा कर मुंह छुपा लेते है जब भी मिलती है
 फिर भी नजरे मिलाने का इंतजार करती है

* कभी आँखों से गुस्सा तो कभी प्यार झलकता है
पता नहीं है कभी इंकार तो कभी इजहार झलकता है
जिसके लिए हमने जिन छोड़ दिया
उनकी आँखों में मेरी जीने के आसार झलकते है

* जीने की   हर अदा तो मैं तुमसे मिलकर ही जान पाया हु
  अगर मरने की जरुरत आ पड़ी तो समझना मर चूका हु
वैसे तो किसी का क़र्ज़ रखना मेरी आदत नहीं
पर इस क़र्ज़ में भी मज़ा का एहसास जान पाया हु

*इस ढाई अक्षर प्रेम में सारा जग समाया  है
जिन मरना एक तरफ प्यार ही प्यार समाया है
 प्यार न होता तो दुनिया खली होती
प्यार से ही सारा जग जगमगाया है

*तेरे एक इशारे में जिन छोर दू
दिल क्या जान क्या ये जमाना छोड़ दू
तुम कहो तो दिन को रात रात को दिन
कहु और दिन को दिन रात को रात कहना छोड़ दू

*पतझर हो सावन हो या हो बसंत बहार
कोई मौसम अब अच्छा नहीं लगता
बस अच्छा लगता है मौसमे प्यार

* प्यार के मौसम में दिल के फुल खिलते है
कलियें जवान होकर भवरे से मिलते है
भवरे कलि को फुल बनाने के लिए उसमे जा समता है
जब कलियें फुल बन जाती है
भवरे को छोड़ आशिक के हो जाता है
सच्चा आशिक मिल जाये तो खुदा मिल जाता है
वरना आशिक छोड़ देते है महबूबा के सामने फुल को
और फुल धुल में मिल जाता है

*शिकायत न करते ज़माने




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