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Thursday, 29 August 2013

खुद के फ़साने

हम लड़ते रहे इस ज़माने से देखा न मुर कर खुद के फ़साने को
तोहमते हमने लगाइ बरसात के मौसम में बदलो में छिपे असमानों पर
जानते थे जब की बरसात तो अपने समय से ही आएगा
एक साल नहीं हुई बरसात तो समझे छत्री की जरुरत नहीं
समय बदलने में कोई समय नहीं लगता है
ये बात क्यों नहीं हमने समझी इस ज़माने ने
हमारे लोगो ने ही हमें मुर्दा घोषित कर दिया और जलने भी चल दिए शमशानों में
जबकि हमने उनकी सांसो में हवा (ओक्सिजन ) भरी थी
देख कर वो मेरी लडखडाती सांसो को
तैयारी की अर्थी सजाने की \
हमें प्यार से लगता है डर  जब से वफ़ा की जगह मिली खुद के दिल जलने की

खुद के फ़साने  की याद जब आती है रो पड़ता है आँखे दिल जल जाने से




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