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Wednesday 11 September 2013

बस उन्नति ही उन्नति चहिये हमें भाई

आज सुबह जब मेने न्यूज़ चैनल खोल  देख
मेरा मन यु तरप उठा जैसे जला हो सीना 
 बिन आग के ही भभका  देखा  वो नजारा सरको  बिछी  लाशे 
हम प्यार के मसीहा सारा क्या ये मंजर  इस बात को सही है बताता 
कोई कहता हम हिन्दू  हम मुसल्मा है सिख या  इसाई 
क्यों कोई मजहब हमको हिया ये बताता 
हत्या किसी की करना कोई  सिखाता 
कहता है  गीता ,कुरान ,बाइबिल ,गुरु  साहिबा  भी 
कोई नहीं इसके बातो है दुहराता 
हम है हिन्दू हुम मुसल्मा कोई न कहता हम है इन्सान 
जात पात और धर्म तो  बनाया क्या कोई इस बात को मानता भी है यारो 
हथियार कोई आपनो भी उठता देखना है तो यार्रो दंगो जाकर देखो \
खाते  थे बैठकर एक  थाल में खाना 
रोते थे देखकर आँखों  में जिसके अंशु मुस्कुराहतो पे जिसके खिलता था चेहरा सबका 
ये क्या हो गया है बन बीते जो आज एक दुसरे के दुश्मन 
कहते है हमने गीता और  कुरान पद लिए 
पर पढ़ न पाए उनकी चालाकियो की बाते जो आपने फायदे  के लिए लडवाए सारे  भाई 
धरती भी देख कर ये रोज की लड़ाई रोटी है देखो बहनों और देखो मेरे भाई 
ये कुर्शी के लिए चंद लोग लड़ रहे है 
एक कुर्शी के ही खातिर करवा दी ये लड़ाई 
हम सोचते है हमने बचे धर्म की शान पर सोच कर तो देखो खोई है कितने भाई 
फायद किसी का होगा न   नुकशान एक पैसे का 
नुकशान तो सिर्फ होगा हम लोगो का ही भाई 
हम काटते है सुनकर गिदर की एक हु अपने ही भाइयो के गर्दन भाई 
एक बार गलतियों को न समझे कोई बात नहीं 
हर बार की गलतियो पर भी हम शर्मसार भाई 
गर है हम्मे जरा सी  भी इंसानियत की पहचान 
तो दिखो दो कुर्शी के दीवानों को हम वो नहीं जो सिर्फ 
जो काटे गर्दनो को आपने ही आपने भाई 
शांति की तलश में   कोई तो साथ चलो उसके 
गर आतंक फैलाये कोई उसको ही भागो भाई 
फिर से  बने हमारा भारत वो सोने की चिड़िया और शांति का मिशाल मेरे भाई 
होने न पाए कोई दंगा न इस शहर में बस उन्नति ही उन्नति चहिये  हमें भाई 



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